बेटा-पढ़ाओ बेटी-बचाओ : टिया चौहान

पहले जब कभी बलात्कार की घटना टीवी, अख़बारों में सुनते थे,लगता था ये मार्मिक दुर्घटनाएं अस्थिर क्यों हैं अभी तो कुछ दिन पहले ही ऐसी हृदयविदारक ख़बर मन को झकझोरी थी !!
धीरे-धीरे समयांतराल हादसे हमारे आसपास होने लगे वृतांत से कई दिनों तक मन विचलित होने लगा हर बालिका,महिला को देखकर डर बढ़ने लगा और अब उम्र अनुभूति की उस चौखट पर प्रवेश कर चुकी है की देश समाज में नारी-उत्पीड़न का वास्तविकता चेहरा अब साफ दिखलाई पड़ता है जिहाँ जो पहले कभी-कभार सुनने मिलता था जिसे हम रेप, बलात्कार कहते हैं वो तो रोजाना होता है या फ़िर यूँ कहें कि पहले भी होता था बस ख़बरों की सुर्खियों में आने से पहले ही दम तोड़ चुकी होती थीं ; आज भी हर रोज तड़पती है आत्मा जिसकी संरचना नारी की होने का मलाल करती है जब नोचे जाते शरीर उसके!
देर रात महिलाओं के साथ हुए कुकृत पर किसी ने सच ही कहा है कि लड़कियों के रात में बाहर होने से रेप नहीं होता रेप लड़कों के रात में बाहर होने से होता है।
“बेटा-पढ़ाओ बेटी-बचाओ” के आधार पर सामाजिक और राजनैतिक तत्वों से कहना चाहूंगी…
विधानसभा और लोकसभा में पहुँचकर भी नारी उत्पीड़न के लिए चूँ तक न कर पाने वाली नारियों को कोटि-कोटि बधाई…
महिलाओं के लिए आरक्षण तो दे दिए लेकिन महिलाओं को संरक्षण नहीं दे पाने के लिए बधाई….
एक महिला होकर भी रेप पीड़ित महिला के विरुद्ध एक बलात्कारी का केस लड़ने वाली महिलाओं को बधाई…
बलात्कार की दुर्घटना के एक समय बाद अपनी सिमित संवेदनाओं को नियमानुसार क़ब्र में दफना देने वालों को बधाई….
गौवंश को माता मानने वाले ऐसे दिव्यमानव जो जन्मदायिनी नारीजाती को भक्षण का साधन समझते हैं उनको भी बधाई…